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fanindra bhardwaj: रिश्तों के एहसास

Monday, February 12, 2024

रिश्तों के एहसास




 कुछ रिश्ते कड़वाहट से भरे होते हैं और कुछ रिश्तों में ग़ज़ब की मिठास होती है कुछ रिश्ते सात जन्म के बंधन के लिए बंध जाते हैं तो कुछ रिश्ते सात फेरोंमें ही रह जाते हैं यूँ तो कोई भी रिश्ता इतना कमजोर नहीं की आसानी से तोड़ दिया जाये मगर कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो  बहुत कमजोर रह जाते हैं  इसी से जुड़ी एक कहानी मैं आपको सुनाता हूँ  

सुनारपुर नाम का एक छोटा सा गाँव था तक़रीबन हज़ार डेढ़ हज़ार घर होंगे उस गाँव में उसी गाँव में एक छोटा सा परिवार रहता था जिसमें कुल पाँच लोग थे  तीन बहनें और दो भाई बहने भाइयों से बड़ी थीं और भाई बहनों से  छोटे थे 

माता पिता का देहांत हो गया था तो घर की ज़िम्मेदारियाँ  बड़ी बहनों पे थीं क्योंकि भाई सारे छोटे और नासमझ नाबालिग थे वो गाँव  बहुत पिछड़ा और ग़रीबी से भरा हुआ था इसीलिए वहाँ रोज़गार के पर्याप्त साधन भी नहीं थे सब जैसे तैसे गुज़ारा कर रहे थे सबकी अपनी अपनी समस्या होती थी सब कुछ ना कुछ समाधान करके ज़िंदगी के दिन काट  रहे थे  क्योंकि सब कुछ बस एक वर्ष तक ही अच्छा चलता था और  हर दूसरे वर्ष नयीं समस्या उन्हेंझेलनी पड़ती  जैसे बरसात आयी तो बाढ़ का ख़तरा और गर्मियों में सूखे का ख़तरा ज़िंदगी में रोज़ मर्रा की दिक़्क़तों की तो गिनती ही नहीं उन्हें हमेशा येही लगता था कि ईश्वर हमारे लिये निर्दयी हो गया है या फिर किसी पाप की सजा भुगत रहे हैं हम इतनी समस्या होने की वजह से कितने लोग गाँव छोड़ गये और कितने छोड़ने को तैयार थे मगर कुछ पुराने लोगों के समझाने पर वे मान जाते थे 

अब ये तो उस गाँव कि भौगोलिक समस्या  बता दी मैंने अब आइये इस गाँव  की सामाजिक समस्या कि चर्चा करते हैं  दर्सल जहां ग़रीबी हद पे हो वहाँ भूख से बढ़ के कोई पाप नहीं और भोजन से बड़ी कोईपूजा नहीं ये ही विधान होता है सो इस सुनारपुर गाँव की भी यही दुर्दसा थी यहाँ एक समय का पेट भरना ही काफ़ी था 

किसी को भी विकास प्रगति या भविष्य की चिंता नहीं थी वहाँ अंधविस्वासी भावना के अनुयायी हो चुके थे सब पढ़ाई लिखाई वहाँ कोई मायने नहीं रखती थी  

सबकी अपनी धारणा थी सबके अपने विचार थे और हैरानी की बात ये थी की किसी भी राजनीतिक दल या राजनीतिक संस्था ने उस गाँव पे ध्यान नहींदिया उस गाँव के विकास पे ध्यान नहीं दिया इसलिए वह गाँव बहुत ही पिछड़ा होता गया  ख़ैर क्या ही कहना आइये आगे बढ़ते हैं तो ये थी सामाजिकसमस्या सुनारपुर गाँव की  तो जैसा कि एक परिवार का परिचय करवाया था आपसे शुरुआत में आइए वापस उसी परिवार के पास ले चलता हूँ  उसपरिवार का भी हाल सब ठीक ठाक ही चल रहा था बस तब तक जब तक की समाज की नज़र नहीं पड़ी थी उस परिवार पे क्योंकि समाज तो चार  बातबनाने से नहीं चुकता ख़ैर कुछ साल बीते बहनें भी शादी लायक़ हो गयीं थी सो उन्हें भी ससुराल जाना था यहाँ भी एक समस्या थी की ससुराल कैसा मिलेगा  पति कैसे मिलेगा सब ये सोच रहे थे क्योंकि जैसा भी था फ़िलहाल तो ठीक ही था परंतु शादी के बाद क्या होगा सोचने वाली बात ये थी ख़ैर जोहोना है वो तो होगा ही कहते हैं लड़की पराया धन है सो पराये घर जाना ही होगा और अगर नहीं भी गई तो फिर समाज की चार बातें शुरू हो जातीं हैं 

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