तकलीफ़ बस इस बात की है …

शायरी खामोशियों की जुबाँ से 

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तकलीफ़ बस इस बात की है 

की अब वो मुझे पहचानता नहीं है 
ताउम्र गुज़ारी है मैंने जिसके साथ 
वो कहता है की मुझको जानता नहीं है 

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सफ़र अधूरा रह गया वो 
जिसमें तुझे हम पाना चाहते थे 
बातें भी वो बयाँ ना हो सकीं वो बातें 
जो तुझे हम बताना चाहते थे 
दफ़न कर दिए हमने वो सारे 
अब जज़्बात जो करके मुलाकात 
हम तुझे जताना चाहते थे 
गया था तू ही यूँ मुझसे ख़फ़ा हो कर उस मोड़ से 
उस मोड़ पर हम तो कबका तुझे मनाना चाहते थे 
ना हो सकी इश्क़ में हम से ख़फ़ा नाराज़गी तुझसे 
मेरे दिल में थी ये जो कशमकश तेरी ख़ातिर 
ब मोहलत वो हम तुझे समझाना चाहते थे 
ज़्यादा कुछ नहीं थी मेरे दिल की ख़्वाहिश 
बस तेरे दिल में हम जरा सा ठिकाना चाहते थे 
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कोई ऐसा तो नहीं मिला अभी तलक 
जो मेरे दिल की बात समझ सके 
या फिर कोई ऐसा जो मेरे हालात समझ सके 
यूँ तो मिले बहुत थे मुझे लोग इस जमाने में 
मगर वो ना मिला मुझको जो मेरे जज़्बात समझ सके 
झाँक कर मेरी आँखों की गहराइयों में
वहीं पर मौजूद है जो बरसात समझ सके 

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घड़ी है ये इम्तिहान की 
सो इम्तिहान दे रहे हैं 
वो माँगता है जब भी 
तो ख़ुशी से अपनी जान दे रहे हैं 
किसी से न की कभी उसकी शिकायत 
ना ही कभी उस रब से हम 
ये सब बयान कर रहे हैं 
उसके एक इशारे पर हम अपनी 
हर ख़ुशी को ख़ुशी से क़ुर्बान कर रहे हैं 

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आख़िर क्यूँ आए हो तुम ये पैग़ाम लेकर 
साथ में यादें भी उसकी तमाम लेकर 
इरादा पक्का कर चुके हो क्या 
यूँ मुझको तुम सताने का 
जो आए हो मुक़्क़मल ये इंतज़ाम लेकर 
अरसों पुराना कोई इंतक़ाम लेकर 
और साथ में बेरहम सी ये शाम लेकर 

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जरूरी था क्या दिल में आकर जाना 
या फिर दिल को दुखाना जरूरी था 
ठुकराना ही था आख़िर में अगर 
तो फिर क्या मुझे अपनाना जरूरी था 
वादे भी जो निभाने का अगर इरादा नहीं था
तो फिर ये बताओ की क्या वो बहाना जरूरी था 

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नहीं है कोई तुम जैसा हसीन 
तो क्या हम जैसा कोई अजीब होगा 
क़ातिल खुदकी ख्वाहिशों का 
या हम जैसा कोई बदनसीब होगा

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मत पूछो इश्क़ की तुम 
मै भी वहाँ से होकर आया हूँ 
लूट गए मेरे ख़्वाब सभी 
और खाकर वहाँ से ठोकर आया हूँ 

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रौंद दिए गए थे जो इश्क़ में 
एक दफ़ा फिर से सुधार कर के वो गुलाब लाया हूँ 
किराए की हैं ये नींदें और उधार के वो ख़्वाब लाया हूँ 
हर पन्ने पर जिसमें लिखी हुई है वफ़ा-ए इश्क़ 
बड़ी ही मशक़्क़त से ढूँड कर के वो किताब लाया हूँ 

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मत पूछ मुझसे पहेलियों में 
जो भी कहना है तुझे
तू वो साफ़ साफ़ कह दे न 
जरूरी नहीं हर बात मेरे ही हक़ की हो 
तुझे जो कहना है मेरे ख़िलाफ़ तो कह दे न 

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आँखें पढ़ कर देखिए कभी 
आपको बेहद राज मालूम हो जायेंगे 
ना हो सके जो खामोशियों में बयाँ 
वो दिल के अल्फ़ाज़ मालूम हो जाएँगे 

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लाख नारजगी है उसको मुझसे 
मगर वह इन सब के बावजूद रहती है 
ढूंड सको तो ढूँड लेना तुम उसे 
वो मुझमें आज भी मौजूद रहती है 

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समझा न पाया मैं 
या फिर तुम्ही समझ न पाये 
की तुम ही मेरे साये की तरह हो 
अपनाता रहा तुम्हें मैं तुम्हारे हर अक्स में 
और तुम्हारा बर्ताव ये था 
की जैसे पराये की तरह हो तुम 

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समझा न पाया मैं 
या फिर तुम्ही समझ न पाये 
की तुम ही मेरे साये की तरह हो 
अपनाता रहा तुम्हें मैं तुम्हारे हर अक्स में 
और तुम्हारा बर्ताव ये था 
की जैसे पराये की तरह हो तुम 

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मूँद ली आँखें और तुमको याद करता रहा 
तुम तो जा चुके थे मगर तुम्हारे लौटने की 
मैं फ़रियाद करता रहा 
हँसी आई ख़ुद पर और 
दिल पर रोना आया  की क्यों ही बेवजह 
मैं वक्त बर्बाद करता रहा 

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कितना भी गहरा क्यों ना हो 
इसको छुपाना पड़ता है 
इश्क़ में आख़िरकार पछताना पड़ता है 
ठुकराये जाने पर भी जाना पड़ता है 
अपने ही दिल को सताना पड़ता है 
दिल तोड़ कर इश्क़ में दिखाना पड़ता है 
अजीब है ये रस्म मगर निभाना पड़ता है 

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उससे जो लफ़्ज़ों में बयाँ नहीं हो सकता 
कितना भी करूँ मैं मगर 
उससे फ़ासला नहीं हो सकता 
यादों में मेरे महफ़ूज़ है आज भी वो 
यहाँ से तो कभी वो लापता नहीं हो सकता 
इश्क़ तो दिल की एक सौगात है 
ये कोई मसला नहीं हो सकता 

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एक अधूरी सी आस लेकर आया था मैं ख्वाहिशें तेरे पास लेकर 
उम्मीदों भरी निगाहें और दिल में विश्वास लेकर 
आया था कुछ यादें तेरी साथ अपने खास लेकर 
बातें वो तेरी मीठी मीठी और तेरे ही एहसास लेकर 
आया था मैं पास तेरे हिस्से की अपनी साँस ले कर 

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तोड़ तोड़ कर टुकड़ों में इस दिल को 
मैं बर्बाद करता रहा 
बेक़सूर था ये मासूम दिल 
उसके बाद भी मैं इसे बर्बाद करता रहा 
छीन लिया मैंने इससे वो सारे जज़्बात प्यार के 
और तेरी यादों को इस दिल से मैं आजाद करता रहा 
हैरानी है मुझको इसकी इस बात पर की 
टुकड़ों टुकड़ों में बिखर गया था ये दिल
बावजूद उसके ये तुझको ही याद करता रहा 

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कभी एक संकल्प थी तुम मेरी
 मगर अब मात्र एक कल्पना हो तुम
ठुकरा चुका हूँ अब तुम्हारी
 सारी लावारिस उन यादों को 
मेरी खातिर अब मात्र एक सपना हो तुम

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बहुत कुछ बचा है अभी भी जो तुझको कभी बताना था 
बातें वो जो तू कभी समझी नहीं वो भी तुझको समझाना था 
लक़ीरों में ना थी ना ही तक़दीरों में तू मिली 
कह भी ना सका तुझे कितनी मुद्दतों से तुझको पाना था 

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वो सामने आ जाए तो मैं घबराता रहता हूँ 
फिर भी ना जाने किस बात पर मैं इतराता रहता हूँ 
मुद्दतों से मुद्दा वो खामोशियों में दफ़्न था 
जिसकी दास्ताँ मैं सभी को बतलाता रहता हूँ 

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चलने दो आज ये कलम 
मुझे हर बात लिखनी है 
खामोशियों तले दफ़्न थी जो मेरे 
अल्फ़ाज़ों के ज़रिए उसकी हर 
वो वारदात लिखनी है 
डर नहीं रहा मुझे अब उसकी जुदायी का 
इसलिए उससे जो मिली है 
वो रिहाई की सौगात लिखनी है 

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ज़िन्दगी ये मेरी अभी उदास चल रही है 
धड़कनों से ख़फ़ा ये मेरी साँस चल रही है 
नहीं रहा मैं अब मुझमें मौजूद कहीं 
हर तरफ़ मेरे वजूद की तलाश चल रही है 

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विश्वास ही टूटा हो जहाँ 
वहाँ उम्मीदें भी क्या कर सकती हैं 
और आँखें ही रूठीं हों ख्वाबों से अगर 
तो नींदें भी  क्या कर सकती हैं 

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ग़ैरों की अमानत थी वो जो दो पल की ख़ुशी मिली थी 
आख़िरकार उसे मोड़ कर आना था 
और वो यादें जो दो पल थी साथ मेरे उसे भी यार छोड़ कर आना था 

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तेरी दहलीज़ से ठुकराया हुआ मैं सवेरा हूँ 
तू मान ना मान मगर मैं तेरा हूँ 
तू चमकती चाँदनी है अगर उस चाँद की 
तो मैं भी तुझसे लिपटा हुआ अँधेरा हूँ 

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नहीं हो सकतीं हमसे ये बयानबाज़ियाँ 
सो हमने तो हार मान ली  
तुम ही हो इकलौते बेक़सूर 
हमारी तो निगाहें भी हैं क़ुसूरवार हमने मान ली 

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किसी और जहाँ की है वो 
की उसे वफ़ा के बारे में कुछ मालूम नहीं है 
या फिर ये दिल ही पागल है मेरा 
जिसे उस बेवफ़ा के बारे में कुछ मालूम नहीं है 

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कोई ऐसा तो नहीं मिला अभी तलक 
जो मेरे दिल की बात समझ सके 
या फिर कोई ऐसा जो मेरे हालात समझ सके 
यूँ तो मिले बहुत थे मुझे लोग इस जमाने में 
मगर वो ना मिला मुझको जो मेरे जज़्बात समझ सके 
झाँक कर मेरी आँखों की गहराइयों में
वहीं पर मौजूद है जो बरसात समझ सके 

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क़लम का सिपाही हूँ 
मैं कलम की बात लिखता हूँ 
लिखते होंगे लोग मसख़रे 
मगर मैं तो जज़्बात लिखता हूँ 

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पूछो कभी उससे भी वो दिल में अपने 
तुम्हारे लिए क्या जज़्बात रखती है 
समझते हो तुम तो उसके इशारे 
मगर वो भी क्या तुम्हारी खामोशियों की 
मुक़्क़मल मालूमात रखती है 

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सफ़र अधूरा रह गया वो 
जिसमें तुझे हम पाना चाहते थे 
बातें भी वो बयाँ ना हो सकीं 
वो बातें जो तुझे हम बताना चाहते थे 
दफ़न कर दिए हमने वो सारे 
अब जज़्बात जो करके मुलाकात 
हम तुझे जताना चाहते थे 
गया था तू ही यूँ मुझसे ख़फ़ा हो कर उस मोड़ से 
उस मोड़ पर हम तो कबका तुझे मनाना चाहते थे 
ना हो सकी इश्क़ में हम से ख़फ़ा नाराज़गी तुझसे 
मेरे दिल में थी ये जो कशमकश तेरी ख़ातिर 
ब मोहलत वो हम तुझे समझाना चाहते थे 
ज़्यादा कुछ नहीं थी मेरे दिल की ख़्वाहिश 
बस तेरे दिल में हम जरा सा ठिकाना चाहते थे 

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सीख रहा हूँ अभी 
की कैसे प्यार किया जाता है 
करके गुमराह दिल को कैसे 
इस झूठ का कारोबार किया जाता है 

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तुम्हें भी खड़ा होना पड़ेगा उस कटघड़े में 
इकलौता मैं ही क़ातिल नहीं हूँ 
बराबर के हम दोनों गुनहगार हैं
उस गुनाह में अकेला मैं ही शामिल नहीं हूँ 

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खामोशियों में भी अल्फ़ाज़ बड़े गहरे होते हैं 
यादों की ये आवाज लिए ठहरे होते हैं 
पाबंदियाँ होतीं हैं खामोशियों में 
की कुछ भी बयाँ ना हो सके जुबान से 
तभी तो सख़्त से सख़्त यहाँ अल्फ़ाज़ों के पहरे होते हैं 

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उठाकर कलम हम एक ही पैग़ाम लिखने लग जाते हैं 
उसकी यादें उसकी बातें हम सुबह शाम लिखने लग जाते हैं 
इक वो है जिसको मेरे ख्याल तक नहीं आते 
इक हम हैं जो ख्वाबों में भी खुदको 
उसके नाम लिखने लग जाते हैं 

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पूरा शहर ही तेरे नाम हो चुका है 
किससे करूँ मैं शिकायत तेरी 
ये शहर जो तेरा ग़ुलाम हो चुका है 

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मुरझाना ही था उसे आख़िर में 
इसलिए उसने खिलना छोड़ दिया 
हाथ में सबक़े छुरे थे यहाँ 
लिहाज़ा सबसे मिलना ही छोड़ दिया 

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कोई इस पागल दिल को 
समझाने वाला नहीं है 
कैसे समझाऊँ मैं इसको 
की अब वो आनेवाला नहीं है 


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आँखों में बस नमीं रह गई थी 
उसके बाद तो बस उसकी कमीं रह गई थी 
कह ना सके हम उससे कुछ भी उसके जाने पर 
जुबान जो मेरी होठों में बस जमीं रह गई थी 
आँखें खुली होठ खामोश और 
धड़कने भी ये थमीं रह गई थी

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कहने दो ना मुझे जो उसको पैग़ाम कहना है 
अरसों से दिल मैं क़ैद हैं जो वो बातें उससे तमाम कहना है 
नहीं हो सकेंगी बयाँ मुझसे मेरी ये ख़ामोशियाँ 
सो इसी लहज़े में उससे उसके इल्ज़ाम कहना है 

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अभी भी तेरी यादों का 
मैं बोझ लिए घूम रहा हूँ 
एक तू ही तो है जिसकी यादें
 मैं हर रोज़ लिए घूम रहा हूँ 
तेरे ही इंतज़ार में मैंने हर लम्हा गुज़ारा है 
मगर तुझे ख़बर ही कहाँ की कितनी शिद्दत से 
मैं दिल में तेरी खोज लिए फिर रहा हूँ 

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आँखों में अश्क़ होना चाहिए 
ऐसा नहीं है की हर शख़्स रोना चाहिए 
हो जाती हैं साफ़ नज़र और 
दिल साफ़ हो जाता है अगर 
तो फिर जायज़ है आँखें भिगोना चाहिए 

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उनकी याद आती रहती है 
उनसे मिलने की इस दिल से 
फ़रियाद आती रहती है 
क्या थी कमी हम में 
जो छोड़ गए वो हमें 
हर ख़बर हमें उनकी 
उनके बाद आती रहती है 

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टूट गईं हैं नींदें तो क्या 
नींदें तो टूटती रहती हैं 
टूट गईं हैं उम्मीदें तो भी क्या 
उम्मीदें भी तो टूटती रहती हैं 

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सायर तो सारे के सारे झूठे होते हैं 
उनकी उम्मीदें और उनके सहारे भी झूठे होते हैं 
करते हैं वो बातें बयां अपनी इशारों में 
मगर उनके तो सारे  इशारे भी झूठे होते हैं
कैसे होंगी बातें सच्ची उनसे 
सच की वजह से ही तो वे बेचारे टूटे होते हैं 
यूं हैं नहीं सारे सायर झूठे होते हैं

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आ गए हम भी इश्क में हार कर 
कर्ज़ उनकी ख्वाहिशों का उतार कर 
और अपने ख्वाबों को इन्हीं हाथों से  उजाड़ कर

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कितनी तो सिफारिस की थी तब उसने बारिश की थी 
कैसे कहूँ की मेरा हमदर्द है वो खुदा
 जिसने मेरे ख़िलाफ़ इतनी साज़िश की थी

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वो कहता है की सब समझता है 
खुदको वो रब समझता है 
मायूसी मेरी आँखों की 
और मेरी खामोशियों का 
मतलब समझता है 

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नाज़ुक होती हैं 
जज्बातों की डोर 
इसलिए इन पर 
इतना जोर नहीं करते 
जाने दे ऐ दिल 
इतना गौर नहीं करते 
यूँ छोटी छोटी बातों पर 
इतना शोर नहीं करते 
हांसिल नहीं होती हैं 
कुछ ख्वाहिशें भी 
इसलिए खुदको 
इतना कमज़ोर नहीं करते 

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मेरी बातों को मुलाक़ातों को ऐसे भुलाना नहीं था 
तुम्हें जाना ही था अगर तो ऐसे जाना नहीं था 
क्यूंकि तुम ही तो थे मंजिल मेरी मेरा 
तुम्हारे सिवा कोई और ठिकाना नहीं था 

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उसे आज़माना भी था अगर हमें 
तो हम इम्तिहान भी देने वाले थे 
एक इशारा भी उसका काफ़ी था 
उसकी ख़ातिर हम तो अपनी जान भी देने वाले थे

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तुझे खोने का इस दिल में मलाल चल रहा है 
तेरी यादों का सिलसिला अब तो फ़िलहाल चल रहा है 
अजीब सी है कश्मकश और अजीब सी हैं ये मजबूरियाँ 
की वक़्त भी बड़ी तेज़ी से अपनी चाल बदल रहा है 

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वो कहती तो है की 
वो कहीं नहीं जाएगी
मगर फिर भी वो  
उसकी बेरुखी सही नहीं जाएगी

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कैसे करूँ बयाँ मैं वो शब्द 
जो मेरे दिल में अधूरे रह गए 
पसंद आ गया उसको ये सारा जमाना 
एक हम ही उसकी ख़ातिर बुरे रह गए 

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 बदल गए हैं सब किरदार 
और अब कहानी भी बदल गई है
नहीं रहे अब वो राजा और
  अब रानी भी बदल गई है 

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चुभती है खामोशी 
और साये भी चुभने लगे हैं 
हालात अभी ऐसे हैं 
की अपने तो अपने 
पराये भी चुभने लगे हैं 

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किस हिसाब का है ये जमाना इस बार उसको हमने आजमाने दिया 
उससे ना वफ़ा हुई ना प्यार सो इस बार उसको हमने जाने दिया 
एक दफ़ा नहीं जाने कितनी दफ़ा हमने उसको सब कुछ दोहराने दिया 
उससे ना वफ़ा हुई ना ही प्यार फिर भी उसे प्यार के बहाने दिया 

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हमारे जज्बातों की  जहाँ हिफ़ाज़त नहीं है 
ऐसी महफ़िलों की हमको चाहत नहीं है 
मुंह फेर कर हम भीड़ से अक्सर तनहा चलते हैं 

क्यूंकि भीड़ में हमें चलने की आदत नहीं है 

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stay tune ……

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