शायरी • ग़ज़लें • दर्द-ए-दिल

Wednesday, December 3, 2025

किसी ना किसी की कमी महसूस होगी

  🍂🍂🍂कागज़ के जज़्बात 🥀🥀🥀

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किसी ना किसी की कमी महसूस होगी 

जब तक ना टूटेगा वहम, ये ग़लतफ़हमीं महसूस होगी 

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तलब भी उसकी है जिसको पाना मुश्किल है 

समझाऊँ भी कैसे दिल को,समझाना मुश्किल है 

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बात थोड़ी सी है अजीब मगर मैं कहना चाहता हूँ 

की तुझमें या तेरे दिल के क़रीब मैं रहना चाहता हूँ 

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आँखों में ग़म लबों पर हँसी लिए बैठे हैं 

इश्क़ में अजीब सी ये  बेबसी लिए बैठे हैं 

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वो कल तो आया नहीं जिसकी मैं तलाश में था 

और आज भी मैं बिताया नहीं जो मेरे ही पास में था 

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टूट कर ख़्वाब अश्कों तले जायेंगे 

तोड़ कर ख़्वाब देखना लोग चले जायेंगे 

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तू ही बता की ये मेरे किस काम की हैं 

दिल धड़कनें भी तो तेरे नाम की हैं 

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जायज़ा क्या ही दूँ मैं तुम्हारे सवालों का 

सिलसिला मिटता ही नहीं है उसके खयालों का 

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दिल में उसके मुझे आज भी वफ़ा दिखती है 

वो जो इस समाज को बेवफ़ा सी लगती है 

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दिल की गहराई में जाकर लोग वार करते हैं 

फिर इन साजिशों को ये लोग प्यार कहते हैं 

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मत पूछना मुझसे तुम की किसका यहाँ कैसा किरदार है 

क्यूंकि माथे पर किसके लिखा है की ये शख़्स ग़द्दार है 

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तलब थी हमें जिस शख्स की उसी ने हमसे किनारा किया था 

सोचो कैसी होगी वो बेबसी जिसमें हमने गुजारा किया था 

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समझ ही ना सकोगे तुम मेरे किरदार को 

ना मेरी नफ़रत को और ना ही मेरे प्यार को 

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इश्क़ वफ़ा तो महज़ झाँसे हैं 

मत पड़ना तुम इनमें ये झूठे दिलासे हैं 

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जाने वालों को मुड़ कर मत आने देना 

हो चुकी है जो खता उसे मत दोहराने देना 

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बारीकियाँ मेरी क्या आपने छानी है 

मेरी हर ख़ामोशी में कोई कहानी है 

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हौसलों से लाचार और क़िस्मतों के मारे हुए हैं 

यूँ हीं तो नहीं यहाँ लोग हमसे किनारे हुए हैं 

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आइए एक दफ़ा आप ये दिल थाम लीजिए 

फिर उसके बाद जो मर्जी आप इल्ज़ाम दीजिए 

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तजुर्बा इतना है की नक़ाब के पीछे की सूरत पहचान लेता हूँ 

किस अंदाज़ से कौन पेश आयेगा मैं उसकी जरूरत पहचान लेता हूँ 

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टूट गईं वो उम्मीदें जो मैने उससे रखी थी

उसमें वफ़ा की कमी थी बाकी लड़की वो अच्छी थी 

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वक्त अच्छा हो तो नज़राने पेश किए जाते हैं 

वरना यहां तो बस ताने पेश किए जाते हैं 

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देखा है मैने यहां सबकी शराफ़त को 

शरीफों को और उनकी आदत को 

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कितनी ख्वाहिशें अपनी मार के बैठा हूं 

इश्क़ में आखिर में  मैं हार के बैठा हूं 

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कहीं न कहीं कमी रह जाती है 

कितना भी हो यकीं गलतफहमी रह जाती है 

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इश्क़ में इस कदर हमें गुमराह किया गया है

की देकर झूठी उमीदें हमें तबाह किया गया है 

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उसकी समझ से परे हैं हम 

इसलिए उसने समझा की बुरे हैं हम 

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यादें आज भी उसकी बरकार हैं 

वो जो शख़्स मुद्दतों से फ़रार है 

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वो जो उस्ताद थी रूठ कर जाने में 

गुज़र गए जमाने उसको मनाने में 

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ज़िन्दगी से मौत की महज़ कुछ फसलों की दूरी है 

इसलिए घबराना क्यों जब दोनों ही जरूरी हैं 

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आदत ही छोड़ दी हमने रूठने मनाने की 

क्यूंकि ये दुनिया ही नहीं है दिल लगाने की 

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सोचा था तुम्हें मेरे जज्बातों की गहराई दिखायेंगे 

दफ़्न हैं जहाँ मेरे ख़्वाब तुम्हें वो खायी दिखायेंगे 

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दो कदम चलो मेरे साथ ख़ुद ही तुम्हें एहसास हो जाएगा 

कैसे टूटा था मेरा विश्वास तुम्हें भी विस्वास हो जाएगा 

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stay tune ….


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